संकलन – डाॅ. दिलीप शर्मा, संदर्भ – तू ही माटी, तू ही कुम्हार
आपने काम और पढ़ाई के साथ-साथ अपने व्यक्तिगत काम स्वयं करो तो बहुत अच्छा है। बस, तुम्हें तुम्हारे दैनिक कार्यों के लिए किसी पर आश्रित ना रहना पड़े। कपड़ों को सुव्यवस्थित रखना, पुस्तकों, फाइलों को सम्भालना, पेन, चार्जर, डायरी, जूते-मोजे, अन्तर्वस्त्रों को सुव्यवस्थित रखना भी तुमको आना चाहिए। छोटी-छोटी चीजों के लिए “कहाँ है? देखा क्या?” का शोर ठीक नहीं। कोशिश करो अपनी वस्तुओं को उपयोग के बाद यथा स्थान रखो। शायद तू मन में सोचता होगा कि पढ़ाई पर ध्यान दूं कि इन चीजों को व्यवस्थित रखने पर ध्यान दूं।
यार! ये कोई पहाड़ उठाने जैसा काम नहीं है। तुझे तेरी ही चीजों को सम्भालने, सँवारने के लिए बोल रहा हूं। मैं तो कहता हूँ अपने कपड़े, बर्तन धोना, अपना बिस्तर लगाना, उसे उठाना और भी अपने छोटे-मोटे व्यक्तिगत काम तू खुद किया कर। इसमें कोई ज्यादा समय नहीं जाएगा। शुरू में भारी लगेगा पर बाद में ये फटाफट होने भी लगेंगे। सचमुच ये तेरा ज्यादा वक्त नहीं लेंगे। तू एक बार करके तो देख। आलस के मारे अपने काम दूसरों को सौंपना और समय से ना हो पाने पर चिल्लाना, परेशान होना ठीक नहीं। इसके बजाय अपना काम खुद किया कर। बाजार से कोई सामान लाना हो, कभी कोई फाइल, बुक, पेन या कुछ लाना हो तो स्वयं ही ले आने की चेष्टा करना।
समय हो तो औरों की मदद करना, पर अपने काम के लिए दूसरों को परेशान न करना। “कभी भी कर लेंगे, बाद में कर लेगें।” ये बोल के काम इकट्ठे नहीं करना। बाथरूम में कपड़ों के ढेर पड़े हैं और खूंटी पर शर्ट लटक रही है। बिस्तर महीनों से बिछा है। सुबह चादर हटा के उठे रात को फिर से खींच के ओढ़ ली, ऐसा बिल्कुल मत होने देना। प्यारे ! आलसी मत बनना। काम में ढिलाई नहीं करना। जब खुद को ही करना है तो रोज का काम रोज हो जाए तो अच्छा। काम इकट्ठा हो जाने पर जब कभी करो, तब खूब समय लगता है और उतना व्यवस्थित भी नहीं होता। ठीक कहा ना प्यारे लाल !