Meet Ri Pati

जैसा आहार वैसे विचार

गोवत्स श्री राधाकृष्ण जी महाराज

 संकलन – डाॅ. दिलीप शर्मा, संदर्भ – तू ही माटी, तू ही कुम्हार

            प्यारे…..!

           खान-पान का भी विद्यार्थी जीवन में बहुत महत्व है। ‘जैसा खाये अन्न वैसा होवे मन’ यह पुरानी कहावत तुमने सुनी ही होगी। मन अच्छा होता है तो अध्ययन भी अच्छा होता है, ये तू समझता ही है। जो विद्यार्थी घर में रहकर पढ़ते हैं उन्हें खाने-पीने की तमाम सुविधाएं घर में उपलब्ध रहती हैं। सो वे हरदम कुछ ना कुछ खाते ही रहते हैं। घर में किसी चीज की मनाही हो तो बाहर जाकर खा लेते हैं। बाहर का खान-पान निश्चित रूप से मन और शरीर को बिगाड़ता है। कुछ विद्यार्थियों का तो नियमित खान-पान बाहर ही होता है जिसका जिक्र वे बड़े गर्व से करते हैं। इसे सुन कई विद्यार्थियों का मन भी ललचाने लगता है और वे भी ऐसा करने लगते हैं। 

               शास्त्रों में कहा है ‘अति सर्वत्र वर्जयेत् जब वे अति कर देते हैं तो भविष्य में उन्हें कोई न कोई रोग पकड़ लेता है। कई बार कहीं का कुछ प्रसिद्ध है यह मानकर खा लेते हैं। स्वाद-स्वाद में अधिक खाद्य पदार्थ पेट में डाल लेते हैं। इन प्रसिद्ध चीजों में खतरा ज्यादा होता है। माँ के हाथ से बने भोजन जैसा हितकर व स्वादिष्ट दुनिया में कुछ नहीं। यहाँ तक कि स्वर्ग का अमृत भी नहीं। जो विद्यार्थी घर में रहते हैं उन्हें तो बस माँ के हाथ से बने भोजन का ही आनन्द लेना चाहिए। होटल, रेस्टोरेन्ट भले ही कितने आलीशान हों, वहाँ मिलने वाली खान-पान की वस्तुओं में स्वाद हो सकता है, पर स्वास्थ्य प्रदायक गुणवत्ता कदापि नहीं। ये बात बाहर खाने वाले समझते हैं पर स्वाद, फैशन और आधुनिकता दिखाने के चक्कर में, कुछ दोस्तों की संगत पाने, उनके ग्रुप में जुड़े रहने के लिए घूमते रहते हैं। चाहे भाए या न भाए, समझ में आए न आए, पचे या न पचे, बस खाकर अपना पेट खराब करते रहेंगे। फिर पेट व गले में जलन होगी। हाजमा हमेशा खराब ही रहेगा। ये सब कोई किसी को कहता नहीं शर्म के मारे, पर ये हालत विद्यार्थियों की है। सन्तुलित, सात्विक, पौष्टिक आहार ही अध्ययन में तुम्हारी सहायता करेगा। पिज्जा, बर्गर, चाउमिन और भी देशी-विदेशी चटपटे मसालेदार व्यंजन कदापि नहीं खाएं।

                अपने दैनिक आहार में रोज भीगे हुए एक मुट्ठी चने, मूंग, मोठ, सुबह- सुबह जरूर खाओ। ये तुमको भरपूर कैल्शियम, आयरन और विटामिन देंगे। घोड़े की मजबूती का राज भीगा चना ही है। दोपहर में या सुबह जब जमे तब कुछ फल खाओ। ध्यान रखो भोजन के साथ और सूर्यास्त के बाद फल नहीं खाएं। भोजन खूब चबाकर तसल्ली से करो। भोजन को समय दो। इसे फालतू का काम समझ के निपटाने की भावना से हड़बड़ी ना करो। देशी गाय का दूध-दही उपलब्ध हो सके तो जरूर सेवन करो। हॉस्टल में सात्विक व पौष्टिक भोजन मिल सके ऐसी चेष्टा करो। इधर-उधर खाने से जरा बच के रहो। अध्ययन की व्यस्तता में खान-पान को गौण मत करो। अच्छे खान-पान से दिमाग भी चलता है, ये सच है। क्या खाना क्या नहीं खाना ये जानकारियाँ तुम किसी माध्यम से प्राप्त कर लेना। मैं तो बस संकेत रूप में कह रहा हूँ। दिन में समय पर भोजन कर लेना और रात को देरी से भोजन करने से बचना। ध्यान रखना पेट में भोजन का पाचन नहीं होने से भी उल्टे सीधे सपने आते हैं। वैसे तू थोड़े में ही सब समझने वालों में से है।

               अब तेरा सवाल होगा कि कभी-कभार दोस्तों के साथ बाहर खाने की नौबत आ ही गई तब क्या करना? यार मैं तो कहता हूं उनको भी जूस पिला देना और उनके साथ तू भी जूस पी लेना। जिनका मन रखने को गड़बड़ चीजें खाना पड़े वे कैसे दोस्त। तेरे कहने से यदि वे गलत खान-पान ना छोड़ सकें तो बेकार है ऐसी दोस्ती। मेल-जोल रखो, आओ-जाओ, काम आओ, पर कभी भी न उल्टा खिलाओ, ना उल्टा खाओ। इसी में भला है। ये पक्का जान। बस, अब आगे पढ़ो और आगे बढ़ो।