Meet Ri Pati

विद्यार्थी जीवन

गोवत्स श्री राधाकृष्ण जी महाराज

 संकलन – डाॅ. दिलीप शर्मा, संदर्भ – तू ही माटी, तू ही कुम्हार

               जो हमेशा सीखता रहे उसे विद्यार्थी कहते हैं। श्रेष्ठ लोगों ने कहा है कि व्यक्ति को जीवन के अन्तिम क्षण तक कुछ न कुछ सीखते और समझते रहना चाहिए। हमारे शास्त्रों के अनुसार जीवन के प्रारम्भिक पच्चीस वर्ष विशेष रूप से गुरु अनुशासन में रहकर विद्याध्ययन और ब्रह्मचर्य के माने गए हैं। हालांकि वैसा स्वरूप वर्तमान में कहीं दिखता नहीं है, पर तुम चाहो तो अपने आचार-विचार, खान-पान, संगति जीवन शैली में शास्त्रों के भावों का आदर करके उन्हें अपनाकर विशेष लाभ उठा सकते हो। हो सकता है कि ऐसा करते समय कभी पाश्चात्य जीवन शैली के रंग में रंगे मित्र तुम्हारा उपहास उड़ायें। लेकिन तुम उन पर ध्यान न देकर अपने निश्चय, अपने विचारों पर कायम रहना। फिर वही तुम्हारे ये ही मित्र एक दिन तुम्हारे प्रशंसक भी होंगे, इसमें कोई शक नहीं। यह एकदम निश्चित है।

                 अध्ययन, व्यक्तित्व निर्माण, सेवा, सत्संग, संस्कार एक तरफ छोड़कर जो युवा अपना समय अपने शौक, मौज-मस्ती, तरह-तरह की इच्छाओं को पूरा करने में खर्च कर देते हैं, उन्हें विद्यार्थी नहीं कहते। विद्यार्थी वह है जिसके लिए विद्या ही सबसे बड़ा अर्थ है। वैसे विद्या का अर्थ शास्त्रों में आचरण से है पर वर्तमान समय में विद्या का अर्थ ‘आधुनिक तकनीकों का ज्ञान रखते हुए, जीविकोपार्जन उपलब्ध कराने वाले ज्ञान को विविध विषयों के अन्तर्गत प्राप्त करना ही समझ में आता है।’ लेकिन तुम अपने जीवन में विद्या की परिभाषा यहीं तक सीमित मत रखना। जीविकोपार्जन जरूरी है तो उसकी शिक्षा किसी एक माध्यम से लेते रहना। साथ ही साथ जीवन को सुन्दर बनाने के लिए सत्संग, सेवा, स्वाध्याय आदि के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करते रहना। तुम जहाँ हो वहीं तुम्हें सब मिल जाएगा।

               विदेशों में पढ़ रहे भारतीय विद्यार्थियों के लिए ये कुछ कठिन हो सकता है, पर भारतीय युवाओं के लिए सहज उपलब्ध है। विशेष बात यह है कि विद्यार्थी को भी ये सब अपने जीवन में महत्वपूर्ण लगने चाहिए। ऐसे भी कई विद्यार्थी हैं जिन्हें डिग्री पाने के अलावा पारिवारिक/सामाजिक व धार्मिक कार्यक्रम फिजूल लगते हैं। उनके लिए डिग्री पाना, फिर नौकरी या व्यापार करके धन कमाना, सुख-सुविधा से रहकर सभी को यह एहसास दिलाना कि मैंने सफल होकर इतनी सुख सुविधा जीवन में प्राप्त की, यही महत्त्वपूर्ण है। वे इसी को अपने जीवन का सार समझते हैं।

               प्यारे ! तू ऐसा मत बनना। ना ही अपने मन में ऐसी सोच बनने देना। अपने जीवन को सुख-सुविधा से जोड़ने में नहीं अपितु दूसरों के जीवन को सुखी बनाने में लगाना है। अपने माता-पिता, परिजनों के जीवन को अपनी सेवा भावना व सुन्दर समझ का सहारा देना है। किसी पर एहसान करने की तरह नहीं, पूरे आदर और सम्मान के साथ। खैर, ये अलग बात है। अभी तो तुम माता-पिता से सेवा ले रहे हो। तुम अपने जीवन को सुन्दर, सुव्यवस्थित, सुयोग्य बनाने की तैयारी में लगे हो। तुम्हारे माता-पिता तन, मन, धन से तुम्हारी सेवा किए जा रहे हैं। पिताजी यह सोचकर बैठे हैं कि मेरा बेटा अभी पढ़ रहा है, सीख रहा है। उन्हें विश्वास है कि मेरा बेटा बाद में सब कुछ सम्भाल लेगा, फिर मैं खूब आराम करूंगा और देश-विदेश में भ्रमण करूंगा। उधर माँ को इन्तजार है कि एक सुन्दर सुशील बहू आएगी, जो तुम्हारे रूप, गुण, विद्या पर रीझ जाएगी। माँ रोज सोच रही है कि तुम धीरे-धीरे उस लायक बन रहे हो।

              माँ को ऐसा लगता है कि तुम अच्छी पढ़ाई के बाद अच्छी डिग्री प्राप्त करोगे, फिर किसी अच्छे परिवार की कन्या तुमको मिल जाएगी। प्यारे ! तुम कभी शांत दिमाग से सोचो कि तुम क्यों पढ़ रहे हो? पढ़ने के पीछे तुम्हारा लक्ष्य क्या है? शायद तुम्हारे माता-पिता को अच्छा ना लगे, पर प्यारे ! बहू पाने के लिए मत पढ़ो। पढ़ो बहुआयामी व्यक्तित्व के लिए। मेरी माँ भी मुझे बचपन में कहती थी कि अच्छी पढ़ाई करोगे तो अच्छे घर में सगाई होगी, अच्छी बहू आएगी और खूब सेवा करेगी। खैर, मैं तो पाँचवी कक्षा के बाद ही पढ़ाई में पिछड़ गया था क्या बहू आती और कैसे होती सेवा। अब तो बस हरि गुण गाओ, दाल रोटी खाओ।

              खैर ! बहुआयामी व्यक्तित्व का अर्थ केवल पढ़ाई और डिग्री ही नहीं। बहुआयामी व्यक्तित्व का मतलब है कि इस बात की समझ हो कि जीवन क्या है, क्यों मिला है, जीवन का सदुपयोग कैसे होगा। धर्म के विषय में ज्ञान हो, शास्त्रों की जानकारी हो, विषय वस्तु का बोध हो, धार्मिक सामाजिक परम्पराओं, पर्वो की जानकारी हो। समाज के प्रति अच्छा चिन्तन हो। समाज हेतु कुछ रचनात्मक कार्य करने की भावना हो। व्यवहार में प्रामाणिकता हो। सभी को समाधान देने का गुण हो। हृदय में राष्ट्र भक्ति-प्रभु भक्ति का संगम हो। अपने देश और देश की संस्कृति तथा राष्ट्र के वीर नायकों पर गर्व हो। उनके प्रति आदर भाव हो। साथियों-मित्रों के प्रति सहयोग की भावना हो। व्यवस्थित एवं मितव्ययी जीवन हो और हमेशा मुस्कुराते चेहरे के साथ, सभी को मुग्ध करने वाला, कला का सम्पुट लिए छल-कपट से दूर जीवन हो। 

                      तू कहेगा “अरे बाप रे! इतना कब आएगा मुझ में?” बहुआयामी व्यक्तित्व के बजाय बहू लाना आसान है प्यारे! इस बात को समझ तू। यह सोच ले कि तुझे अपना व्यक्तित्व ऐसा बनाना है। मैं सच कहता हूँ ये गुण तेरे भीतर आने लग जाएंगे। बस तू अपनी संगति अच्छी रखना और आलस्य को खुद से दूर रखना। मैं विश्वास दिलाता हूं कि तू शीघ्र बनेगा बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी ! मैं फिर से निवेदन करता हूँ यार, इन बातों को काम में लेना।

                प्यारे ! विद्यार्थी जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज है “समय”। समय विद्यार्थी जीवन ही नहीं हर व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण है। तुमने सुना भी होगा ‘समय बड़ा बलवान’, ‘समय ही सम्पत्ति है’ आदि-आदि। प्यारे ! तू अपना समय कभी खराब मत करना। बेवजह समय को बिगाड़ेगा तो समय तुम्हारा सब कुछ बिगाड़ देगा। अलार्म लगाया सुबह छः बजे उठने का, पर बार-बार अलार्म को बन्द करके सिर्फ आलस्य के कारण देर तक लेटे रहना समय को बिगाड़ना है। फिर देर से उठना और हड़बड़ी में तैयार होकर दौड़ते-हाँफते स्कूल, कॉलेज, ऑफिस पहुँचना। इस बेकार की हड़बड़ी में कितनी गड़बड़ी हो जाती है। इसके बाद पूरा दिन अस्त-व्यस्त-सा ही रहता है। 

 

                 शायद तुमने ये अनुभव भी किया होगा कि बहुत से महत्त्वपूर्ण कार्य बाकी रहते भी तुम मोबाइल वाट्सएप, फेसबुक और ऐसे ही उपक्रमों में मन बहलाने में लगे रहते हो। ये भी तो समय को बिगाड़ना ही है। विद्यार्थी जीवन में तुम्हारा जो उद्देश्य है, उस उद्देश्य से सम्बन्धित कार्य पूर्ण करके फिर एक निश्चित समय इन सब को दो। मनोरंजन भी करो, मित्रों से गपशप भी करो। वाट्सएप करो। फेसबुक उपयोग करो, पर पहले अध्ययन का समय नियोजित करो ।

                     हालांकि ये विषय अलग है पर इसकी थोड़ी बात यहां कर लेते हैं। वाट्सएप, फेसबुक के अधिक उपयोग के दुष्परिणाम भी धीरे-धीरे सबके सामने आ रहे हैं, पर जिन्हें इसकी लत लग गई है वे इन दुष्परिणामों पर ध्यान देने को तैयार नहीं हैं। जब ध्यान ही नहीं देंगे तो मानेंगे कहां से? जब क्रिकेट मैच होता है तो सब उसकी चर्चा में, उसको देखने में, उससे सम्बन्धित समाचार जानने में, उन समाचारों के आदान-प्रदान में और उससे सम्बन्धित व्यवहारों में कितना समय बिगाड़ देते हैं? कभी सोचा है? पहले चार साल में एक बार वर्ल्ड कप होता था। तब हालात ऐसे होते थे कि स्कूल-कॉलेज जाते समय विद्यार्थी रास्ते में टी.वी. की दुकानों के बाहर खड़े होकर मैच देखते नजर आते थे। अब तो हर घर की बात छोड़ो, हर मोबाइल में टी.वी. है। सो वे पुराने नजारे कभी-कभार ही देखने को मिलते हैं। अब वर्ल्ड कप के अलावा भी आए दिन कोई न कोई मैच चालू ही रहता है, तुम भी उसमें लगे रहते हो। जरा सोचो क्रिकेट मैच देखने में खर्च किया समय तुम्हारे क्या काम आया, इससे जीवन में कोई विशेष लाभ नहीं होगा। दोस्तों में अपनी क्रिकेट की दीवानगी जताने और उसकी जानकारियाँ देने से तुम विशेष माने जाओगे, इस चक्कर में तुम्हारे कितने घण्टे, कितने दिन व्यर्थ हो जाते हैं। कभी किसी फिल्म को लेकर, कभी किसी सनसनीखेज घटना को लेकर, कभी किसी फिल्म अभिनेता या अभिनेत्री के व्यक्तिगत जीवन को लेकर, कभी शहर के किसी म्यूजिक मनोरंजन के शो को लेकर, कभी शहर में खुले किसी क्लब को लेकर, कभी शहर के किसी होटल या रेस्टोरेन्ट में खाने के स्वाद को लेकर हम चर्चा करके कितना समय बिगाड़ते हैं। शायद तुम समझ रहे होगे। जो चीजें तुम्हारे विद्यार्थी जीवन का उद्देश्य प्राप्त कराने में बाधक बनें, उन बातों से बचना। दिन भर का अधिकाधिक समय अपने उद्देश्यपूर्ण कार्यों को दो। हाँ! थोड़ा-बहुत समय मनोरंजन आदि के लिए भी दो, पर पहले उद्देश्यपूर्ण कार्य हो फिर दूसरे में ध्यान जाय। पता नहीं मैं तुम्हें अच्छे से समझा पा रहा हूँ या नहीं, लेकिन यह समझ लो कि समय को बिगाड़ा तो समय की नाराजगी भारी पड़ेगी। समय के छोटे से छोटे भाग का भी सदुपयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए तुम्हारा मित्र अथवा अथवा तुम्हारा भाई स्नान घर में स्नान करने गया है और तुमको भी स्नान करना है तो “जल्दी कर, जल्दी कर” चिल्लाने के बजाय उन पाँच-दस मिनटों में तुम अपनी पुस्तक खोल कर कुछ सूत्र अपने ध्यान में ले सकते हो। अपने नोट्स पढ़ सकते हो। माना कि यह व्यवस्थित पढ़ाई नहीं हुई पर समय का सदुपयोग तो हुआ। तुम्हारा मित्र या भाई तुम्हारे शोर मचाने से, बिना नहाए तो  बाहर निकल नहीं आएगा तो फिर क्यों न तब तक कुछ अच्छा पढ़ लिया जाए। कुछ अच्छा लिख लिया जाए। इस तरह तुम समय का सदुपयोग करोगे तो समय तुमको मालामाल कर देगा।

                 जो लोग समृद्ध हैं, सुखी हैं ऐसे लोगों को देखकर अन्य लोग कहते हैं कि इसका समय अच्छा चल रहा है और जो दुखी हैं, परेशान हैं, उन्हें देखकर लोग कहते हैं कि इसका समय खराब चल रहा है। समय को सब मानते हैं पर समय की नहीं मानते। समय एक ही बात कहता है कि कुछ भी अच्छा करो पर मुझे बिगाड़ो मत। कभी फर्स्ट डे फर्स्ट शो फिल्म, कभी ज्यादा गोल गप्पे खाने का कॉम्पीटिशन, कभी रास्ते चलते-चलते किसी गाड़ी से आगे अपनी बाइक ले जाने की होड़, न जाने चलते-चलते कहाँ-कहाँ कितना समय यूं ही खराब करते हैं। प्यारे। मैं जानता हूँ जवानी की मौज अलग होती है, पर जवानी सिर्फ मौज के लिए ही नहीं होती। जीवन निर्माण के लिए जवानी है। अरे! एक बात तो भूल ही गया। विद्यार्थी जीवन में कहीं किसी लड़की के प्रति आकर्षण हो गया और मन इश्क, प्यार के ख्याल में लग गया फिर तो गई भैंस पानी में। फिर तो हर समय दिमाग वहीं घूमता रहेगा। कितना समय किसी के बारे में सोचने में ही चला जाएगा, पता ही नहीं चलेगा।

                 ज्यादा क्या कहूं। तुम सब जानते-समझते हो। देखा ही होगा ऐसे चक्कर में पड़े अपने किसी दोस्त को। मेरे प्यारे दोस्त! तुम विवाह योग्य होने से पहले ऐसे किसी भी काम में खुद को मत उलझाओ। मन इधर-उधर कभी चला भी जाए तो अपने गुरुजन, माता-पिता, बड़े भाई अथवा किसी श्रेष्ठ को बताकर उनसे हित की बात समझकर अथवा खुद जबरदस्ती करके मन को रास्ते पर लाओ। फिल्मों को देखकर जीवन की कल्पना मत करो, अपनी वास्तविकता में रहो प्यारे।

 

                अपने जिम्मे लिए कार्यों को समय पर पूरा करो। जिस काम को जितना समय में पूरा करने का तुमने आश्वासन दिया हो उसे उतने समय में पूरा कर दो। देरी होने के बाद वो काम ज्यादा समय लेगा। समय पर काम करके अपनी एक खास पहचान बनाओ। कई बार मन नहीं होने से काम टाल देते हो। मूड नहीं होने के चलते अपने स्कूल-कॉलेज के फॉर्म भरने और दूसरे कामों में पिछड़ जाते हो। फिर कितनी मेहनत इन कामों के लिए तुमको करनी पड़ती है। जब ये पता है कि देर-सबेर ये कार्य करने ही हैं तो, अपने मूड को छोड़ कार्य करने की चेष्टा करें।

 

                  मूड नहीं है, मन नहीं कर रहा, बोर हो रहा हूं जैसी बातों से कार्य को विलम्बित ना करें। इन सब बातों में समय व्यर्थ ना करें। घर, स्कूल, कॉलेज में, किसी खास दोस्त ने हमारे मन के विपरीत कुछ कह दिया फिर हमारा बहुत सारा समय इस गम की भेंट में चढ़ जाता है कि उसने हमें ऐसा क्यों कहा। यार जिसने जो कहा वो उसका है तुम जो हो वही हो। उसके कहने से तुम बुरे या गलत थोड़े ही हो जाओगे। वे तुम्हें गलत समझ रहे हैं जबकि तुम गलत नहीं हो। इस तरह खोये- खोये रहने से कुछ होगा क्या? अपना काम अच्छे से करो, अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। तुम सही हो। जो सही है, वह अपने आप सबके ध्यान में आ जाएगा। जब तुम अपने नकारात्मक भावों को दूर रखकर अपने कार्य में ध्यान दोगे, समय का सदुपयोग करोगे तो समय भी खुश होगा।