Meet Ri Pati

समय की रेत पैरों के निशां

गोवत्स श्री राधाकृष्ण जी महाराज

 संकलन – डाॅ. दिलीप शर्मा, संदर्भ – तू ही माटी, तू ही कुम्हार

               क्या तुम जानते हो, पढ़ने का सबसे अच्छा समय अगर कोई है तो वह है सुबह का समय। जब हम विश्राम करके उठते हैं, उस समय शरीर और दिमाग एकदम तरोताजा रहते हैं। आस-पास कोई हलचल नहीं। वातावरण भी एकदम शान्त। ऐसे समय में तुम दो घंटे भी मन से पढ़ लिए तो वह पढ़ाई तुम्हारे लिए वरदान होगी। हालांकि केवल सुबह-सुबह की दो घंटे की पढ़ाई से कुछ होगा नहीं। दिन में भी समयानुसार पढ़ना चाहिए, पर ध्यान रहे प्रातः काल का समय स्वर्णिम समय है। यह स्वर्णिम समय यूं ही ना जाए। हर विद्यार्थी को प्रातः काल जल्दी उठकर पढ़ाई जरूर करनी चाहिए।

                मैंने प्रभात फेरी में देखा है कि सुबह-सुबह हरि नाम स्मरण करने से दिनभर तसल्ली रहती है और कार्यों में भी सहजता लगती है। प्रातः काल का वह संकीर्तन दिनभर चिन्तन में रहता है। मन उन धुनों को गुनगुनाता रहता है। ठीक ऐसे ही तुम हर सुबह अपनी पढ़ाई को आराधना समझ कर करो, दिनभर तुम्हारे मन में एक तसल्ली सी रहेगी और कामों में भी सहज रुचि बनी रहेगी। वह विषय दिनभर तुम्हारे स्मरण का हिस्सा बन पक्की स्मृति में रहेगा। हाँ! पढ़ाई के फैशन से तुम थोड़ा अलग हो जाओ। कुछ लोग कहते हैं कि दिनभर मजे करो, रातभर पढ़ो और फिर सुबह ग्यारह बारह बजे तक सोते रहो। तुमको ये कहाँ तक ठीक लगता है? 

                सोने के समय जागना व जागने के समय सोना कहाँ तक उचित है? ऐसी पढ़ाई तुम्हें कोई विशेष लाभ दे सकेगी ऐसा मुझे नहीं लगता। मैं ऐसे कई विद्यार्थियों को जानता हूँ जो रोज सुबह और दिन में पढ़ते थे और रात को विश्राम करते थे। उनके और रात-रात भर पढ़ने वाले विद्यार्थियों के नम्बर लगभग एक जैसे ही थे, पर रात भर पढ़ने वाले विद्यार्थी का स्वास्थ्य बिगड़ चुका था और दिमाग एकदम थक चुका था। वे सफल हो कर भी सुस्त थे। दूसरी तरफ सुबह पढ़ने वाले विद्यार्थी का स्वास्थ्य भी अच्छा था।

               बहुत से विद्यार्थियों की तो मेहनत ही परीक्षा के एक-दो महीने पहले शुरू होती है। वे दो महीने में पूरी पढ़ाई करके सफल होना चाहते हैं। शायद सफल हो भी जाते होंगे, पर वह सफलता खींचतान की सफलता है। भागते भूत की लंगोटी है। उस सफलता में स्वाद और सुगन्ध नहीं है। उसमें कुछ सीख नहीं है। बस जैसे-तैसे डिग्री पा ली। खैर, अच्छा है, लेकिन नियमित अध्ययन करके जो सफलता मिलती है वह शान की सफलता है। उसमें रखूब सीख होती है। विद्यार्थी की चमक एक सफल साधक जैसी लगती है। वह जीवन में आगे चलकर यशस्वी होता है। इसलिए प्यारे नियमित और निरन्तर पढ़ते रहो। साल भर यार-दोस्त, घूमना-फिरना, मनोरंजन, मेला, मस्ती और परीक्षा के दिनों में भगवान, भक्ति, महाराज, पण्डित, सर, मैडम, मित्र, नोट्स, आदि। मानो ‘दौड़ बिल्ली कुत्ता आया। दौड़ बिल्ली कुत्ता आया।’ ऐसी पढ़ाई जिन्दगी में, क्या लाभ वेगी रे, बता! परीक्षा के पहले एक दो महीने ना खाने-पीने का होश, ना नहाने- धोने का। ना कहीं आना-जाना, ना कोई पर्व और त्यौहार। बस रात दिन एक ही धुन कि “परीक्षा आ रही है, परीक्षा आ रही है।” मानो परीक्षा ना हुई कोई भूतनी, डाकिनी हो गई जो तुम्हें खाने आ रही है। ये डर तभी हमें परेशान करता है जब हम साल भर पढ़ते नहीं हैं। परीक्षा के ठीक पहले जो पढ़ाई करते हैं उन्हें इस पढ़ाई के बावजूद ये आत्मविश्वास नहीं होता कि वह पढ़ा हुआ उन्हें परीक्षा के समय याद रहेगा या नहीं? वे घबराते हुए ही परीक्षा देते हैं। इसके बजाय नियमित पढ़ने वाला आत्मविश्वास से भरा होता है। वह जानता है कि “जो अध्ययन मैंने वर्ष भर अच्छे से किया है वह मेरी स्मृति में है। मैं प्रश्नों को अच्छे से पढूंगा फिर बहुत अच्छे से उनका उत्तर देकर बहुत अच्छे अंक प्राप्त करूँगा।”

             इसलिए प्यारे, तू भी अब ‘दौड़ बिल्ली कुत्ता आया, दौड़ बिल्ली कुत्ता आया’ वाला अध्ययन छोड़ के नियमित व निरन्तर वाला अध्ययन शुरू कर। बोल करेगा ना! शायद तू कहे कि मैं तो अब तक परीक्षा के पहले ही पढ़कर पास होता आया हूँ। साल भर और भी बहुत कुछ काम मुझे करने होते हैं। पास तो हो ही गया और नम्बर भी ठीक ही आए हैं। फिर मैं सालभर क्या पढूँ ?

          यार तेरी बात तो सही है, पर सोच! तू परीक्षा के दो-तीन महीने पहले पढ़ाई में लगा, उसमें तेरे इतने अच्छे अंक आए इसका मतलब तेरी मेधा-शक्ति अद्भुत है। तुझमें प्रतिभा है पर प्यारे परीक्षा के दो-तीन महीने पहले पढ़ाई में लग कर क्या सचमुच तू अपनी इस प्रतिभा का लाभ ले पाया? नहीं, बिलकुल नहीं। यदि तू वर्ष भर नियमित अध्ययन करता तो केवल सफल नहीं बल्कि सर्वोच्च अंकों के साथ सफल होता। विचार करना मेरी बात पर। मैं तुझसे सत्र के आरम्भ से ही पूछता रहा पढ़ाई कैसी चल रही है तेरी? तू शुरू में तो कई महीने ये कहता रहा, हां शुरू करनी है। अब कॉलेज शुरू हुए हैं। अभी पूरे स्टूडेन्ट नहीं आए, बस अब शुरू करेंगे। फिर कहता रहा हां, चल रही है ठीक ठाक। अब सीरियसली पढूंगा। चार छहः महीने तेरे यूं ही निकलते देखे मैंने। ना पढ़ने का कोई कारण मिल जाए तो तू बहुत खुश नजर आता है। खुशी-खुशी पढ़ाई छोड़ कर उस काम में लग जाता है। वह काम कुछ भी हो सकता है। चाहे मेरा तेरे घर पर आना ही हो, चाहे जीजी-जीजाजी आदि के साथ कहीं घूमने जाना हो। चाहे माताजी-पिताजी के कहीं जाने पर घर पर रुकना हो या कुछ और। फिर कोई पढ़ाई के बारे में पूछे तो यह कहना कि अभी ये चल रहा है, अभी वो चल रहा है। स्पष्ट है तू पढ़ाई को महत्व नहीं दे रहा, अन्यथा इन सब कामों के रहते भी तुम पढ़ने का समय निकाल सकते थे, पढ़ सकते थे। अपनी पुस्तकें व नोट्स हमेशा साथ रखो। जहाँ जब समय मिले पढ लो। यह औरों को भी अच्छा लगता है और हमको भी। प्यारे, मैंने एक चीज अपने जीवन में देखी व अनुभव की है वो मैं तुझे बताता हूं। जिस ग्रंथ को मैं थोड़ा भी पढ़ता हूं उस ग्रंथ की मुझ पर पूरी कृपा होती है। क्योंकि मैं उस ग्रंथ से प्रेम करता हूं। 

                   मैं सोचता हूँ तू भी तेरी पढ़ाई से, अध्ययन से प्रेम कर। उसके प्रति समर्पित हो तो वह तुझे खूब सफल करेगी और सदा तेरा साथ देगी। ये सब बातें पढ़ के ज्यादा पढ़ाकू शेर ना हो जाना। खेलना- कूदना, घूमना, मजाक, मस्ती, मनोरंजन, हँसना, बातें करना भी जीवन में रखना, पर पहले अच्छे से पढ़ाई हो जाए फिर जो समय हो उसमें अपनी मौज हो। पढ़ाई को भुला के इसमें न लग जाना। प्यारे ! पढ़ाई के दिनों में अपने खतरनाक दोस्त मोबाइल जी की संगति कम से कम करना। जितनी जरूरत हो उतनी ही। पढ़ते समय तो मोबाइल बन्द ही करके रखना। 

         आजकल लोग मोबाइल के इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि एक क्षण भी उसके बिना रहना लोगों को असहज कर देता है। इस तरह मानव मन एक यंत्र के अधीन हो जाए, ये अच्छी बात नहीं। तुम मोबाइल का उपयोग करो पर अपने मन पर मोबाइल को हावी न होने दो। ऐसा न हो कि उसके कारण तुम अपने अध्ययन जैसे आवश्यक कार्यों में भी अपना ध्यान एकाग्र ना कर सको। अनेक विद्यार्थी इस मोबाइल प्रेम में अपना पूरा साल भेंट कर चुके हैं। तू उनमें शामिल ना होना। तू मन लगा कर पढ़ाई कर। ठाकुर जी तेरे साथ हैं। सबका आशीर्वाद है। तेरी लगन है, तू जरूर सफल होगा। मेरी ओर से अग्रिम बधाई सफल होने की…